Sunday, 14 February 2016

असा मी कसा मी कळेना

"अग  ओरडू  नकोस  त्याला  लहान  आहे तो ..मोठा झाला  की  होईल  शहाणा ,  वागेल समंजसपणे "

असा  संवाद  कानावर  आला  आणि  भानावर  आलो. ........

मी मोठा झालो. ...झालो  समंजस  ?

मी लहान  होतो  तेंव्हा  एकही  भाषा  अवगत नव्हती  फक्त ................ "हसू  आणि आसू " हीच  भाषा  माहिती  होती  पण  त्या  द्वारे  माझ्या  मनातील  ,मला हवे  नको  ते  सर्व  समोरच्याला कळवत  होतो संवाद  साधत  होतो.

......आता  मात्र  मी  मोठा  झालो  समंजस  झालो. ...अनेक  भाषांमध्ये  पारंगत  झालो. ..पण  या ह्रदयाचे  त्या  ह्रदयी  पोहचवण्यात  संवाद  पोहचवण्यात  कमी  पडू  लागलो.

जेव्हा  मी लहान  होतो 
खूप  खूप  शूर  होतो  आग,  पाणी,  वीज  ,उंची  कशाकशाला..  घाबरत  नव्हतो. ...अनेकदा  पायर्‍यांवरून पडून  सूद्धा  पून्हा  पून्हा  चढत  होतो ...

आता मात्र  मोठा ... झालो  समंजस  झालो
"अशक्य" , "कठीण"  असे  शब्द  शिकू  लागलो  ...घोकू  लागलो
अन्याय  ,अत्याचार,  भ्रष्टाचार  या  विरूद्ध  आवाज  ऊठवायला  पण  घाबरू  लागलो ..

जेव्हा  मी लहान होतो तेव्हा ..उत्तम  योगी  होतो. ....पायाचा  अंगठा  सहज  तोंडात  न्यायचो 
पाय  अलगद  डोक्यापाठी घ्यायचो
सहजपणे  

आता   मात्र मी  मोठा झालो  समंजस  झालो...
नैसर्गिक  योगच  विसरलो  आता  योग  शिकायला  जायचा  विचार  करतो
त्या  करीता  ब्रॅन्डेड  ट्रॅक सूट,  मॅट  शापिंग  माॅलमधून    खरेदी  करतो. .

जेव्हा  मी लहान होतो
तेव्हा  राग  अहंकार   काय  ते  माहित  नव्हतं   आईचा  मार  खाऊनही  लगेचच  तिच्याच  कूशीत  शिरत  होतो ...समज  नव्हती  ना. .

आता मात्र  मोठा  झालो  समंजस  झालो. ..
आई  बाबांच्या  एखाद्या  गोष्टीमुळे  खूप  चिडतो. रागावून  अबोला धरतो. ..अहंकार  जपतो

जेव्हा  मी  लहान होतो. .गाण्यावर  संगीतावर  प्रेम  करायचो. ..आईच्या  एका  अंगाई  मध्ये  गाढ  झोपायचो

आता  मात्र  मोठा  झालो  समंजस  झालो 
गाण  ह्रदयाला  निववत  नाही  गोळी  घेतल्याशिवाय झोपच  येत  नाही. ...

जेव्हा  मी  लहान होतो  मशिदीचा घूमट, निमूळते टोकदार  ऊंच  चर्च पाहून  बाप्पा  बाप्पा  ओरडून  आईला  तिकडे  बोट  दाखवायचो

आता  मी  मोठा  झालो  समंजस  झालो  धर्माचा  ठेकेदार   झालो नेमका  माझा देव  कोठे व  कोणता  ते   नेमके ओळखायला  लागलो. ....

मी  खरच  मोठा झालो ?
मी  खरच  समंजस  झालो ?
मी खरच  शहाणा  झालो  ?

आणि  जगजितसिंह  च्या  ओळी  कानावर  पडल्या ..

ये  दौलत  भी  ले लो
ये  शोहरत  भी  ले  लो
भले  छीन  लो  मूझसे
मेरी  जवानी
मगर  मूझको लौटा दो
बचपन का सागर
वो कागज की कश्ती
वो बारीश का पानी
💧 💦💦💦💦

🙏
चिंतनिका जीवन एक " संघर्ष "

         योगेशजोशी
दिसा माजी काहीतरी लिहीत जावे

1 comment: