Sunday, 14 February 2016

कर्मयोग

🙏चिंतनिका  .जीवन एक " संघर्ष " 🌹
.             योगेश जोशी
.             वज्रेश्वरी /ठाणे

.......        "कर्मयोग "

बस  मध्ये  जागा  नसल्यामुळे  अनेक वर्षानी ड्रायव्हर    जवळ  पूढे  केबीनमध्ये  बसायला  लागले

..थोडी  गंमत  पण  वाटली
  समोर  पहाताना  वेळ  सूद्धा  मजेत  चालला  होता. .

.स्थानक  जवळ  आले  होते..  पूढील  कनेक्टिंग  बस  मिळेल  का  ?
या  साठी  घड्याळात  नजर  टाकली. ....
सगळं  वेळेत  होतं  पूढची बस  मिळायला  हरकत  नव्हती. ....

आणि  अचानक  समोर  ट्रॅफिक  जाम. .....   .
पूढे  काही  अंतरावरून
कूठली तरी  पालखी  रस्ता  ओलांडत  होती  .......
पालखी  सोबतची  मोजकी  मंडळी  सोडली  तर  बाकीचे सगळी  मंडळी  ढोल  ताशा  , बॅण्ड - पार्टी  व  डीजे  या   त्रिवेणी  संगमाच्या  ठणठणाटात  बेधुंद  नाचत  होते

......पंधरा  एक   मिनीटांचा तरी  असह्य   अगतिक निवांत  पणा  होता .....

माझी  अस्वस्थता  पाहून 

ड्राइवर  महाशय :  "काय  पूढची गाडी  पकडायची  होय  ?

मी :  -  "होय  पण  आता  मिळेल  अस  नाही  वाटत .
चूकणार  बस  नक्कीच. ."

ड्राइवर :- "अहो  बस  नसते  'चूकत ' ..... 'चूकता ' तूम्ही !!
पण  सवय ,कोणावर  तरी  ढकलून  द्यायच  , मग  ती  बस  का असेना! !

"चूकतो  आपण " हे  कबूल  नाय  करायच    ...
आता हे  समोर  बघा ना ..........ट्रॅफिक जाम  केलय,  ही  पण सगळी  "बस  चूकलेली  "माणस आहेत.

मी  :  "बस  चूकलेली माणस म्हणजे? "

ट्रॅफीक  चा अंदाज  आल्याने  त्यांनी      .गाडी  बंद  केली  व  म्हणाले

"समजा  एखाद्या  ला   'पूण्याला' जायचय ...
अन  त्यान   'नाशिक'  ची   गाडी  पकडली  
तर  पोहचल काय  तो ईच्छित स्थळी ?

मी : - "कस  काय  शक्य आहे ?

ड्राइवर :   तेच  तर  सांगतोय...
..आता  मला  सांगा 

"जायाला गाडी  न्हाई  म्हणाल  तर  महामंडळाची  वीस  लाखाची  बस  आहे. ....
बसायला  जागा  न्हाई  म्हणाल तर  तीन  सीटाव  यकट  बसलय. .
पैसे  न्हाईत म्हणाल  तर  पाचशे ची  नोट  दाखवतय  ..
.तरी  पण  न्हाई  पोहचणार  पायजे  तिथं. .......का  ? 

तर जी  बस पूण्याला   जाते  ती  न  पकडता  त्याला   पायजे  ती   बस पकडली  ...........

मी  :- पण  त्याचा  ईथे  काय  संबंध

ड्रायव्हर :-

"तसच आहे हो ,  ह्या  लोकांच ,

देवाच्या  भेटीला  जायचय  पण  यांना  आवडणार्या  बस मध्ये  बसायचय  .......

ज्या  बस  देवाच्या  गावाला  जातात  त्यात  कोण  बसायला  तयार नाही. 

कोणी  ऊपास तापास  : कोणी  वारी  दिंड्या  : कोणी  कर्मकांड  कोणी  लाख  लाख  जप  करतय. .. कोणी  शरीर  कष्टवतय
पण  ह्या  बस जात  नाही  ना  तिकड .......

....दिन -दूबळयांची, रंजल्या- गांजल्यांची  सेवा,   भूकेलेल्याला  अन्न  , या सारख्या  बस  जातात  तिकडे .....
पण  नेमक्या  त्याच  बस  चूकल्यात.................
आता गंमत  बघा. ..

तूम्ही  ऊशीरा  उतरणार  डेपोत  आणि  तूमची  बस  जाणार. ..पण  तूम्ही  म्हणणार  काय  ?
बस  चूकली ......"चूकतो आपण"   पण  "बस  चूकली  "अस  ढकलून  देतो  दूसर्यावर .....

वाहतूक  सूरू  झाली  मला  क्षणभर   कूरूक्षेत्रावरील  रथात  बसल्याचा  भास  झाला  तो  सारथी  अगदी  साध्या  शब्दांत  गीतेतील  कर्मयोग  सांगत  होता ............

भानावर  येवून  मी म्हणालो  :
"थांबवा  ईथेच  ......

.गेटवर.ऊतरतो मी ....  मला  आता  मात्र  चूकायचे नाही  की  बस  ही  चूकवायची नाही "

🌈 माझी  लेखनयात्रा

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